दूर गगन से आया पंछी


दूर गगन से आया पंछी
रिश्तों की एक प्यास लिए
महकी-महकी सी सौंध लिए
जीवन का एक विश्वास लिए

फिर देखा था भय का साया
रिश्तों की टकराहट देखी
सूनी-सूनी गलियां देखी
लट्ठों की गरमाहट देखी

टेढ़े-मेढ़े चेहरे देखे
आंखों की गहरी सांस लिए
दूर गगन से आया पंछी
रिश्तों की एक प्यास लिए

ए.सी. के कमरे में सोते
टूटे-फूटे सपने देखे
खिड़की से बाहर झांका तो
लुटते-पिटते अपने देखे

दूध पटकते ग्वाले देखे
आगत की एक आस लिए
दूर गगन से आया पंछी
रिश्तों की एक आस लिए

जेठ महीने बारिश देखी
तपती लू की रातें देखी
सांप-नेवले मिलते देखे
कटी जीभ की बातें देखी
बुझा-बुझा सा यौवन देखा
अंतिम-सी एक सांस लिए
दूर गगन से आया पंछी
रिश्तों की एक प्यास लिए

कभी सोचता हूं दिल से
कहां गया वह भाईचारा
जंगल और मवेशी के बीच
ढाई आखर प्यारा-प्यारा

कब देखेंगे हंसते मानुस
गाय, भैंस और घास लिए
दूर गगन से आया पंछी
रिश्तों की क प्यास लिए।
(अपने काव्य संग्रह दूर क्षितिज तक की डॉ. दाधीच के दिल के सबसे करीब कविता)।
डॉ. नरेश दाधीच, कुलपति, वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय, कोटा
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