प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के सलाहकार नायर सदी के ऐसे महानायक के तौर पर उभरे हैं, जिनका जीवन, विचारधारा और व्यवहारिकता करोड़ों लोगों की दशा और दिशा को नए आयाम देता है।
आजादी में अभी वक्त था (1941) कि केरल में एक किलकारी गूंजी। वह गूंज शायद घर की चारदीवारी से बाहर एक दायरे में ही फैली थी। ...और उस गूंज के पीछे छिपे आगाज को काराकुजी कृष्णा पिल्लई और थोट्टूवेल्ली (माता-पिता) ने ही महसूस किया होगा। आज वही किलकारी एक सदी के महानायक की आवाज बनकर उभरी है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के सलाहकारों की सूची में शीर्ष स्थान रखने वाले टी.के.ए. नायर का जीवन सफलता के शीर्ष पर है। नायर का सादगीभरा जीवन, उनकी विचारधारा और व्यवहारिका आज करोड़ों लोगों की दशा और दिशा को नए आयाम देने का काम करते हैं।
भारतीय प्रशासनिक सेवाओं के जरिए 1963 में पंजाब काडर से अपनी शुरुआत करने वाले नायर ने कई महत्त्वपूर्ण पदों पर सेवाओं का अनुभव लिया। उन्हें दक्षिण के संस्कार विरासत में मिले, तो उत्तर की मर्यादाओं को उन्होंने अपने व्यक्तित्व में आत्मसात कर लिया। वे पंजाब के मुख्य सचिव रहे, प्रधानमंत्री के प्रमुख सचिव रहे और अब बतौर प्रधानमंत्री के सलाहकार देश सेवा में समर्पित हैं। नायर की सरलता, उनके वैचारिक दृष्टिकोण को पलभर में जाहिर कर देती है। उनका सुलझापन उनकी सफलता की कहानी कह देता है। प्रशानिक व्यवस्थाओं के प्रति संवेदनशीलता उन्हें दूसरों से जरा हटकर खड़ा करती है। यही वजह है कि एक ऑफिसर की जिंदगी में नायर संवेदनशीलता को खासा महत्त्व देते हैं। वे कहते हैं, ‘हम समाज का हिस्सा हैं। समाज ही हमारा परिवार है। हम जो परिवार में संस्कार और व्यवहार देखते हैं, वैसी ही प्रतिक्रिया करते हैं। प्रशासनिक सेवाओं में भी ऐसा ही है। जैसा वरिष्ठ ऑफिसर करते हैं, उनके बाद वाली पीढ़ी में भी उन संस्कारों का असर आता है। ऑफिसर्स संवेदनशील होंगे, तो उन विचारों तक और उन बातों तक पहुंच पाएंगे जहां सामान्य आदमी या असंवेदनशील व्यक्ति नहीं पहुंच पाता। सामान्य भाषा में इसे समझने की कोशिश करें, तो अगर आप संवेदनशील नहीं हैं, तो आप वही पढ़ेंगे, जो लिखा है। लेकिन अगर आप वाकई संवेदनशील हैं, तो उस लिखावट के पीछे के भाव, विचार और लिखने के कारणों पर पहुंचने में कामयाब होंगे।’...
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