इरादे, संभावनाएं और कड़ी मेहनत एक पूरे युग के गवाह बन जाते हैं। नाबार्ड में राजस्थान के मुख्य महाप्रबंधक जिजि माम्मेन इसकी जीवंत मिसाल हैं। जिजि के देश को समर्पित 27 साल एक विरासत की तरह हैं।
जुनून जब जज्बे के साथ होता है, तो इतिहास जरूर रचा जाता है। क्योंकि पर्दे पर तो हर कोई रहना चाहता है, पर्दे के पीछे रहकर देश के लिए समर्पण और त्याग का भाव बिना जुनून और जज्बे के संभव नहीं होता। जिजि माम्मेन ऐसी ही शक्सियत हैं, जिन्होंने पर्दे के पीछे रहकर भी देश को आगे बढ़ाने का हौसला दिखाया। नाबार्ड, राजस्थान के मुख्य महाप्रबंधक जिजि माम्मेन का अनुभव नाबार्ड ही नहीं बल्कि देश के बैंकिंग उद्योग और ग्रामीण विकास की संभावनाओं वाले हर क्षेत्र के लिए मिसाल हैं।
देश के ग्रामीण विकास में अहम योगदान देने वाले नाबार्ड को पौधे से पेड़ बनने में विशेष भूमिका निभाने वाले जिजि माम्मेन 27 साल का लम्बा अनुभव रखते हैं। यही वजह है कि राजस्थान में नाबार्ड के प्रमुख होकर वे ठेठ ग्रामीण हौसले को प्रोत्साहित करने में जुटे हुए हैं। जिजि जानते हैं कि प्रतिभाएं, विकास और विस्तार की जड़ें भारत के गांवों में बसती हैं। ...और गांवों का विकास इस देश की रीढ़ को मजबूत करता है। अपने कामकाजी जीवन के श्रेष्ठतम अनुभव को बांटते हुए जिजि कहते हैं, ‘1995 के दौर में मुझे केरल के कोट्य्यम में जिला विकास प्रबंधक (डीडीएम) की जिम्मेदारी मिली। बैंकिंग जगत और विशेष रूप से नाबार्ड में यह पद सीधे तौर पर लोगों से जुड़ाव वाला पद है। यहां आम आदमी, गैर सरकारी संस्थाएं, बैंक, कॉपरेटिव समितियां और जिला प्रशासन इन सबसे आपका सीधे तौर पर जुड़े रहना होता है। यहां मैंने करीब से महसूस किय कि ग्रामीण विकास में अपार संभावनाएंं हैं। योजनाओं को मूर्त रूप देना, सही मायने में उन्हें स्थापित करना और आम जरूरतमंद को उसका लाभ मिल सके यह सुनिश्चित करना काफी अहम होता है। ऐसे में डीडीएम रहकर ग्रामीण विकास की पहले चरण को महसूस किया जा सकता है। उससे जुड़ाव बनाकर संभावनाएं देखी जा सकती हैं।’
करीब तीस साल पहेल नाबार्ड की स्थापना के साथ शुरू हुआ मिशन आज कामयाबी की ऊंचाईयों पर है। ऐसे में जिजि उन शुरुआती कर्णधारों में शामिल हैं, जिन्होंने अपनी जिम्मेदारियों, कामकाज और हौसले को बनाए रखते हुए नाबार्ड को एक वटवृक्ष की तरह स्थापित करने में अहम योगदान दिया। आज नाबार्ड देश ग्रामीण विकास में सबसे बड़ी और जिम्मेदारीपूर्ण भूमिका में है। जिजि सरीखे अधिकारी उस जिम्मेदारी को मजबूत आधार देते हुए आगे बढ़ रहे हैं। नाबार्ड में अपने कदमों की आहट से सफलता के शिखर की चर्चा करते हुए जिजि कहते हैं, ‘1982 में नाबार्ड की स्थापना हुई थी। उस वक्त हम कॉलेज में पढ़ा करते थे। मुझे अच्छे से याद है नाबार्ड ने देश के चुनिंदा श्रेष्ठ संस्थानों से अपने ऑफिसर्स चुने थे। स्थापना के तीन साल बाद हमारे इंस्टीट्यूट आईएआरआई, दिल्ली का नम्बर आया। हम बीस लोगों का बैच था, जिसमें से 13 ने नाबार्ड से अपने कामकाजी जीवन की शुरुआत की। उस वक्त मैं करीब 23 साल का था। आज पीछे पलट कर देखो, तो लगता है कि वाकई नाबार्ड में मैंने अपने बेहतरीन अनुभव को जिया है। अगर नौकरी कहीं और लगी होती, तो शायद ही देशभर में जो अनुभव लिया, वो ले पाता। मेरी नौकरी जब लगी, तो मुझे नाबार्ड ने सबसे पहले केरल ही अवसर दिया गया। लेकिन उसके बाद मैं 1992 में ऑफिसर इंचार्ज बनकर मणिपुर गया। तीन साल बाद मुझे वापस कोट्य्यम लगाया गया। यहां बेहतरीन अनुभव लिया। सन् 2000 की बात है, मुझे डीजीएम, मुंबई बनाकर नई जिम्मेदारी सौंपी गई। यहां मैं कॉर्पोरेट ऑफिस में रहा। करीब छह साल बाद 2006 में मुझे मंगलोर स्थिति टे्रनिंग सेंटर में फैकल्टी बनने का अवसर मिला। यह फिर देश के हिस्से में अलग तरह का अनुभव लेने की शुरुआत थी। तीन साल की सेवा के बाद मैं जीएम, रांची की जिम्मेदारी निभाने झारखण्ड चला गया। ...और इसी साल (2012) मार्च में राजस्थान में नई जिम्मेदारी मिली। हालांकि सफर अभी लम्बा है और बहुत कुछ करना बाकी है, लेकिन इस देश के करीब हर कोने से लिए अनुभव से मैंने यही सीखा है कि अगर हम अपना काम पूरी जिम्मेदारी से करते चले जाएं और देश का कोई कोना हो, कोई हिस्सा हो, हम अपने फर्ज निभाने के लिए वहां जाने को तैयार रहें, तो कामयाबी सुनिश्चित हो जाती है।’...
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