बड़ों के संस्कार, छोटों का प्यार और अपनों सा दुलार आईएएस भवानी सिंह देथा के परिवार की खास पहचान हैं। गरिमामयी रिश्तों के रंग में रंगा देथा का भरा-पूरा परिवार बदलते परिदृश्यों में मिसाल जैसा है। ऐसा परिवार जहां जनरेशन गैप के नाम पर दूरिया नहीं बताई जाती, बल्कि अपनत्व के विश्वास के साथ गले लगाया जाता है। संस्कारों से सराबोर देथा ने बांटे जिंदगी के अनछुए पल। यादें, बातें और सौगातें उन्हीं की जुबानी-
पॉपकॉर्न तो प्रेरित करता है!
न उसमें वजन होता है, न ही स्वाद-बेस्वाद की भावना का एहसास। अपने हल्के-फुल्के एहसास से पॉपकॉर्न हमें हमेशा खुश रखता है। कितनी दिलचस्प बात है कि पॉपकॉर्न नुकसान भी न करे और पेट भी भर दे। पॉपकॉर्न से मुझे पे्ररणा ही मिलती है, क्योंकि अगर हम उसकी तरह अहं भाव ना रखें और अपने हल्के-फुल्के मिजाज से, अपनत्व से, बिना किसी को नुकसान पहुंचाए संतुष्ट करते चलें, तो सब कुछ सही दिशा में चलता रहेगा। ...और हां जब हम फिल्म देख रहे होते हैं, तो उस वक्त पॉपकॉर्न से बेहतरीन कुछ नहीं होता। बच्चे भी खुश रहते हैं।
परिवार से मजबूती मिलती है
हमारी जॉइंट फैमिली है। आप उसे एक भरा-पूरा परिवार कह सकते हैं। जोधपुर में एक ही घर में दादाजी, चाचाजी और हमारा परिवार साथ-साथ रहते हैं। यह हम सबके लिए गर्व की बात है कि हमारे संस्कारों में पारिवारिक जुड़ाव, मेलजोल और अपनत्व का भरपूर एहसास पूरी तरह जिंदा है।
बचपन से ही खेलने का शौकीन
क्रिकेट और बैडमिंटन मेरे पसंदीदा खेल रहे हैं। स्कूल की दिनों में हम सब दोस्त घर के पीछे पहाड़ों की घाटी में पांच-पांच घंटे खेला करते थे। आईएएस टे्रनिंग के लिए जब मसूरी गए, तो वहां भी अकादमी में क्लास के बाद 3-9 बजे तक लॉन टेनिस और बैडमिंटन खेलते थे।
‘3 इडीयट्स’ मेंरी पसंदीदा फिल्म
मैंने सबसे ज्यादा कोई फिल्म अगर देखी है, तो वह ‘3 इडीयट्स’ है। ‘तारे जमीं पर’ भी आज के दौर की फिल्मों में पसंद रही है। एक यादगार फिल्म है ‘कागज के फूल’ जिसने मुझे बहुत कुछ सिखाया है। यह सफलता और असफलता के दौर में लोगों का हमारे प्रति व्यवहार और बदलता नजरिया बताती है। इसके अलावा ‘मदर इंडिया’, ‘मुगले आजम’ के साथ-साथ गुरुदत्त की फिल्में पसंद रही हैं।
भवानी की नजर में खुद की पांच कमियां और पांच खूबियां
पांच खूबियां
सुलझा हुआ हूं।
विश्वसनीय हूं।
दृढ़ निश्चयी हूं। वायदा निभाता हूं।
हर अच्छी बात या चीज का सम्मान करता हूं।
काम और जिम्मेदारियों को लेकर समर्पित हूं।
पांच कमियां
संकोची हूं। मन की बात कह नहीं पाता।
कई बार कड़वी बात मुंह पर कहने में झिझक जाता हूं।
काम की व्यस्तता में अपनी निजी रुचियों को समय नहीं दे पाता।
कोई बात बहुत पसंद आती है या फिर बिलकुल पसंद नहीं आती।
व्यस्तता की वजह से पुराने रिश्ते निभाना मुश्किल लगता है।
0 comments:
Post a Comment