जयपुर के ओटीएस में आयोजित काव्य गोष्ठी और गैर फिल्मी गीतों को लेकर आयोजित कार्यक्र में राज्य सेवा अधिकारियों ने समा बांधा। अवसर था राजभाषा हिन्दी दिवस का। हरिशचन्द्र माथुर राजस्थान राज्य प्रशासनिक संस्थान के निदेशक व वरिष्ठ आईएएस रोहित आर. ब्रांडन के प्रोत्साहन से आयेजित इस कार्यक्रम में अधिकारी व प्रशिक्षु अधिकारी शामिल हुए।
इस अवसर पर वरिष्ठ आरएएस व कवि मनोज शर्मा, अश्विनी शर्मा, वरिष्ठ गीतकार लोकेश कुमार सिंह (साहिल), आरएएस, कवि व शायर पंकज ओझा ने कविताएं, गीत और शायरी सुनाए। कार्यक्रम में आरएएस पंकज ओझा की रचना जिसने सबका मन मोह लिया यहां प्रस्तुत है-
मेरी यादों में अब भी उसकी यादों के गुलमोहर खिलते हैं
ये हवाएं अब भी उसकी खुशबू लेकर आती हैं
ये दिल अब भी बेवक्त उसके लिए धड़कता है
इन हाथों की अंगुलियों में अब भी उसका स्पर्श बाकी है
बांधी थी, जो मैंने उससे प्रीत की डोर
उसकी कसक मेरे सीने में कहीं बाकी है
वो ना होती, तो बिखर जाता सब कुछ
उसके होने से मेरा होना कहीं बाकी है
आता है मेरी जिंदगी में तूफान
उसकी दुआओं का मुझे घेरे रखना कहीं बाकी है
उसके हाथों की मेहंदी में कहीं महकता था मेरा नाम
मेरे हाथों की लकीरों में वो अब तक कहीं बाकी है
कुछ भी तो नहीं है, अब उसके सिवा
हर तरफ उसकी मुहब्बत बाकी है
सालों गुजर गए हैं पर
अब भी मेरी सुबह शामों में कहीं बाकी है
तमन्ना है
कर लूं एक बार दीदार कहीं
बस इस आस में
इस जिस्म में एक सांस कहीं बाकी है!
- पंकज ओझा (राज), आरएएस (2001)
0 comments:
Post a Comment